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13 Jul 2017 · 1 min read

आतंकवादियों की देश के अंदर से सहायता वाले आस्तीन के सापों के लिए एक रचना

देखकर हमारी शहादत जिसको खुशी मिलती है
है अपना मगर शक्ल पड़ोसी से उसकी मिलती है

ऐसा भी नही की मालूम न हो ठिकाना उसका
पर सियासत के दिल में वोटों की बेबसी मिलती है

अजब रिवायत है इस शहर की ,वफाओं को भूख
और धोखों को बिरयानी से भरी कटोरी मिलती है

वतन से मुहब्बत ही हमें खामोश नहीं रहने देती
वरना चुप रहने की हिदायत तो हमें भी मिलती है

वतनपरस्ती का तो ये आलम है यहाँ पर सौरभ
जुबां पे तो मिलती है ,पर रगों में नहीं मिलती है

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