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7 Jul 2017 · 1 min read

2122 :1222 : 122: 12 :: एक बार जो पहना .....

जिंदगी कौन तुझसे, मसखरी कर सका
लड के कहाँ उम्र,अपनी बड़ी कर सका

खुद वजूद से भटकते रहता है आदमी
आप-स्वयं से कब, यायावरी कर सका

तिलस्म दिखे हैं होते कई, यहाँ साहेबान
बिगड़े रिश्तो में कौन, जादूगरी कर सका

निपटना तो अभाव से ,आएगा ही कभी
क्या मजाल कोई तो उड़न- तश्तरी कर सका

एक बार पहना ,इस्त्री किया कोट वो
जस का तस कब दुबारा उसे घड़ी कर सका

जिस अदालत हैं बेजान से हलफनामे वहां
तेरा मुंनशिफ तुझे कितना बरी कर सका

सुशील यादव,न्यू आदर्श नगर दुर्ग छत्तीसगढ़
६. ६ .१७

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