बना कुंच से कोंच,रेल-पथ विश्रामालय।।
विश्रामालय रेल का कुंच पड़ गया नाम।
गोरों-शासन बाद तक ऋषि को किया प्रणाम।।
ऋषि को किया प्रणाम कुंच स्टेशन भाया।
संशोधित पुनि नाम कुंच से कोंच बनाया।
कहें बृजेशाचार्य कोंच अब भी देवालय।
बना कुंच से कोंच रेल-पथ विश्रामालय ।।
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👉उक्त कुंडलिया मेरी कृति “नायक जी की कुंडलिकाएं” में भी पढ़ी जा सकती है।
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👉ऋषिवर क्रौंच सु नाम पर, प्रजा कहे श्री कुंच।
चहुँ दिश बोध-विमान-द्विज, ना कोई भी टुंच।।
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👉उक्त दोनों पंक्तिया “क्रौंच सु ऋषि-आलोक” खंडकाव्य/शोधपरक ग्रंथ की पंक्तियाँ है, जो “क्रौंच सु ऋषि आलोक” कृति/शोधपरक ग्रंथ के द्वितीय संस्करण के “आश्रम का विकास” अध्याय /कांड/शीर्षक से ली गईं हैं।
उक्त दोनों पंक्तियाँ यह सिद्ध करतीं हैं कि “क्रौंच ऋषि” को आम-जन “कुंच” नाम से भी जानता पहचानता एवं पुकारता था।
👉कोंच नगर “क्रौंच ऋषि” की तपोभूमि है जो भारत देश के राज्य उत्तर प्रदेश के जिला-जालौन में स्थित होने के साथ-साथ तहसील मुख्यालय ,नगर पालिका परिषद है। कोंच नगर में रेलवे-स्टेशन भी है।
👉 क्रौंच सु ऋषि आलोक खण्ड काव्य/शोधपरक ग्रन्थ का द्वितीय संस्करण अमेजन, साहित्यपीडिया और फ्लिपकार्ट पर उपलब्ध है।
पं बृजेश कुमार नायक