Sahityapedia
Sign in
Home
Your Posts
QuoteWriter
Account
9 Sep 2016 · 1 min read

यादें

जैसे कोई बुझता हुआ दीपक ,
तेज रोशनी से अँधेरे को रोशन कर जाए ।
यादों से आज भी कुछ गुलशन महके हुए लगते है ।

मस्ती कहाँ थी जाम को पीने की ,
वो तो मजबूरी थी यादों को भुलाने की
पीने दे ऐ साकी फिर से तेरी नजरों से
आज भी कशिश है बाकी उनकी यादों की ।।

कभी सोचा था वीराने भी किसी सजा से कम नहीं ,
आज जाने क्यों वो खंडहर भी अपने जैसे लगते हैं ।

Loading...