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14 May 2017 · 1 min read

तुझसे कैसी प्रीत लगी रे ओ मेरे िदलदार

तुझसे कैसी प्रीत लगी रे ओ मेरे िदलदार ,
हुआ हमारा खाना-पीना जीना भी दुश्‍वार ,
जीना हुआ दुश्‍वार िदन को चैन न आये ,
राताे की उड गई है नीदें यादे तेरी तडपाये,
यादें तेरी तडपाये मेरा यु चैन चुराए,
एक बार आकर िमल जा आॅखों को त़़प्‍त कर दे ,
एक बार गले लगा ले नेह की प्‍यास बुझा ले ,
एक बार आकर िजंदगी में िफर छोड न जाना भंवर में ,
आकर के िजंदगी में हाथ छोड न जाना डगर में ,
हाथ हमारा छोडकर दूजे को नही अपनाना जीवन में ,
तुम्‍हारा यह उपहास हमारा जीवन न कर ले लील ,
इस िलए कभ्‍ाी गफलत से मुझे न जाना भूल ,
मुझे न जाना भुल सदा हद्रय में रखना,
रखना इतना िवश्‍वास मेरे ख्‍वाबों में सजना,
सदा मुझे ही मानना सजनी अपना सजन ,
तेरे िलए ही में जीता तू मेरे िलए ही जी ,
मेरे मन का मीत है तू ही मेरी प्रीत
तुझसे कैसी प्रीत लगी रे ओ मेरे िदलदार ,
हुआ हमारा खाना – पीना जीना भी दुश्‍वार ,

भरत गहलोत
जालोर राजस्‍थान
सम्‍पर्क 7742016184

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