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7 May 2017 · 1 min read

मानव

मानव आँखें खोल ले, मची देश में लूट,
सभी ओर विश्वास की , कड़ी रही है टूट।
कड़ी रही है टूट, मिटा भारत का गौरव,
अपने तक ही व्यस्त, स्वार्थी कितना मानव।

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