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6 May 2017 · 1 min read

== ख़त और मन ==

ख़त और मन
/ दिनेश एल० “जैहिंद”

ख़त जो मैंने कभी भेजे नहीं,,
लिखे थे#उनको मैंने तो कई ।।
भर-भर आँसू रोए थे लिखते,,
भेजूँ मैं हिम्मत हुई ना कतई ।।

उठती उम्र की नादानियां ये,,
दिल की कई शरारतें यारो ।।
कभी आसमान को यों तकना,,
कभी छुपके आहें भरना प्यारो ।।

ख़त लिखना यों चुपके-चुपके,,
कोई देखे ना अपने आते-जाते ।।
फिर पढ़ना उन्हें छुपके-छुपके,,
कोई जाने ना अपने रिश्ते-नाते ।।

प्रेम-पत्र ये दूँगा मैं उन्हें जरूर,,
ऐसा सोचता था मैं कभी-कभी ।।
मन की बातें मन में रह जातीं,,
और दिल भर जाता तभी-तभी ।।

उन पत्रों के ढेरों अम्बार लगे हैं,,
दिल में अब वे तारों-से सजे हैं ।।
कुछ तो वे दराजों में धरे-पड़े हैं,,
कुछ तो जेहन में अब रचे-बसे हैं ।।

पलटता हूँ जब-जब पुराने पन्ने,,
मिल जाते हैं वे मुझे कभी-कभार ।।
होंठों से लगा के चुम लेता हूँ मैं ,,
मन-ही-मन कर लेता#उनको प्यार ।।

=== मौलिक ====
दिनेश एल० “जैहिंद”
24. 04. 2017

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