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6 Sep 2016 · 1 min read

मायावी जाल

हजारों मृगतृष्णा का जाल
बिछा है हमारे आसपास
न चाहते हुए हम फंस जाते हैं
इस मायावी जाल में
बच नहीं पाते हैं मोह जाल से
भागते रहते हैं ताउम्र
व्यर्थ लालसाओं के पीछे
हमारी हसरतें, हमारी चाहतें,
हर्ष, पीड़ा, घृणा और प्रेम
उलझे हैं सब इस जाल में

चाहते हैं हम जालों को काटना
और निकल आना बाहर
मगर लाचार हैं हम
हर तरफ घेरे है
हमारी असमर्थताएं

निरर्थक लगता है जीवन
अर्थहीन लगता है सबकुछ
जब टूटने लगता है सारा गुरूर
तलाशते हैं तब हम अपना वजूद

© हिमकर श्याम

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