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29 Mar 2017 · 1 min read

"माँ कृपालिनी"

माँगता आशीष माँ , मानव उद्धार के लिए।
कृपा करो कृपालिनी , सुंदर संसार के लिए।।

प्रफुल्लित हो हर मन, उपकार ऐसा कीजिए ।
मानव, नव रूप भर, माँ नव सभी को कीजिए।।

विजयी पताका द्वार तेरे, आज मैं लगाऊँगा।
माँ रक्ष भक्तों की करो , शीश मैं नवाऊँगा।।

हर रूप का माँ तेरे , हर रूप पर हो असर ।
हर, हरि से बंधा रहे, भाव दे तू इस कदर ।।

अंकुरण तू ऐसा दे , बस प्रेम का उद् गार हो ।
प्रेम फूले, प्रेम फले , बस प्रेम का संसार हो ।।

अंत विनय मेरी सुन , “जय” का तू जयकार दे ।
जग बनाए एक ही माँ , सबको यह विचार दे ।।

संतोष बरमैया “जय”
कोदझिरी, कुरई ,सिवनी, म.प्र.

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