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28 Mar 2017 · 1 min read

!! अनाड़ी लोग-जानते सब हैं !!

हर कोई जानता है
तेरे दर पर जो अर्पित
कर रहा हूँ, वो तेरी
झोली में नहीं जाना है !!

उस का इस्तेमाल का
तो औरों ने फायदा
उठाना है, बस यह तो
इक नया बहाना है !!

प्रसाद तो ठीक है
जिस को सभी ने खाना है
सोना , चादी, बेशुमार धन
यह कहाँ पर जाना है !!

हमारा धर्म ही है कुछ ऐसा
जो ग्रस्त है रूढ़िवादी से
जहाँ कह दिया पंडों ने
बस, वहीँ पे मस्तक झुकाना है !!

कर दिया तो तसल्ली हो गयी
न किया तो दिमाग घुमाना है
न सो सको, न जाग सको
फिर आना सपना अनजाना है !!

घबराहट से परेशां दिल सबका
दुःख दुःख से परेशां होना है
दिन निकलते ही पकड़ कुंडली
पंडों से ही मिलने जाना है !!

दुनिया तेरी बड़ी निराली
जानती सब कुछ पर अनजान है
जो लिखा है तूने तकदीर में
उस से बच के कहाँ जाना है !!

अजीत कुमार तलवार
मेरठ

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