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3 Sep 2016 · 1 min read

समय

२२१२…२२१२…२२१२..२२१२
आधार छंद — हरिगीतिका
समांत – आ, पदांत – कर चल दिए
धुन श्री राम चंदर कृपालु…..
कैसा समय यह आ गया , खुद को उठा कर चल दिये
बिजली गिरी है कब किधर, गुनगुनाकर चल दिये।-१

दिल तोड़ते वे रोज हैं पर , मन में न रखते मलाल
पीड़ा छिपा कर दिल में’ ही हम सर झुका कर चल दिये।-२

माया में’ फँस कर के सभी ही, गिरते’ हैं देखो रात दिन
कुछ ही पलों की चाँदनी फिर मुँह छिपा कर चल दिये।-३

झूठे दिखावे में ही लगे, बातें करें हैं खोखली
सपने सजा कर खूब ही वे, हाथ हिला कर चल दिये।-४

बेबस से’ हैं सब लोग तडपते’, रोने का है रोग हुआ
ख़ाली बुने हैं बैठ सपने, ध्यान बँटा कर चल दिये।-५

हमको ‘लता’ है दुख बहुत, क्या हो रहा संसार को
कैसे कटे यह जिंदगी हम तिलमिला कर चल दिये।-६
सूक्षम लता महाजन

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