Sahityapedia
Sign in
Home
Your Posts
QuoteWriter
Account
2 Sep 2016 · 1 min read

चराग़ों की तरह चुप चाप जल जाते तो अच्छा था

दिलों के ज़ख़्म गर लफ़्ज़ों में ढल जाते तो अच्छा था
वो मेरी दास्तां सुनकर पिघल जाते तो अच्छा था
……………..
न होता फिर कोई शिकवा हमारी कम निगाही का
तुम्हारी जुल्फ के ये ख़म निकल जाते तो अच्छा था
…………
किसी से फिर फ़िराक़े यार के क़िस्से नहीं कहते
अगर हम वक्त की सूरत बदल जाते तो अच्छा था
…………
मरीज़े ग़म दुआओं से कभी अच्छे नहीं होते
अगर ये वक्त रहते खुद सम्भल जाते तो अच्छा था
…. ……
पतंगों की तरह हमसे नुमाइश भी नहीं होती
चराग़ों की तरह चुप चाप जल जाते तो अच्छा था
………….
नज़र से हो गये ओझल बड़ा अच्छा किया सालिब
मेरी सोचों की हद से भी निकल जाते तो अच्छा था

Loading...