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21 Feb 2017 · 1 min read

पत्रकारिता ?

पत्रकारिता हो रही बाजारू,
कलम बिकती बाजार में।
रसूदखोर प्रशंसा पाते,
श्रेय मिलता अखवार में।।
रीति युग का प्रचलन,
हाबी ह़ोता दिख रहा।
अधिकारि व नेताओं की,
यश गाथा ही गा रहा।।
प्रजातंत्र की मश्करि होति,
राजनीति पर होलि।।
नेताओं की परिक्रमा,
आस्था पर लगती बोलि।।
नैतिकता लगी दाव पर,
टूट रही मर्यादा।
खबरें गायब देवालय की,
शौचालय छपते ज्यादा।।
पत्रकार बना व्यपारी,
करता पैसा शौहरत का धन्धा,
निर्भीकता बौनी हो रही,
अखबार हो रहा पुलिंदा।।

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