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30 Aug 2016 · 1 min read

जिंदगी

तपते रेगिस्तान के रेत सी हो गयी है जिंदगी।
दुनिया की दिए गमों में खो गयी है जिंदगी।

दुनिया की भीड़ से हटकर पहचान बनानी थी,
सच की चाह में खुशियों में काँटें बो गयी है जिंदगी।

झूठों और बेईमानों के बिछाये जाल में फंस गयी,
सच की देख दुर्गति खून के आँसूं रो गयी है जिंदगी।

हर तरफ दुश्मन ही दुश्मन हो गए जख्म देने को,
जख्मों के साथ इल्जामों का बोझ ढ़ो गयी है जिंदगी।

अंतिम सांस तक लड़नी है लड़ाई मान सम्मान की,
झूठी बातों के तीर दिल में चुभो गयी है जिंदगी।

सुलक्षणा हर हाल में जीत होगी बस हौंसला रखना,
बड़े बड़े झूठों के दाग सच से धो गयी है जिंदगी।

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