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19 Jan 2017 · 1 min read

भँवर

भँवर
लगता है किसी भँवर में हूँ
अनचाहे शहर में हूँ
अनजाने लोगों की नज़र में हूँ
डर लग रहा है
कहा जाऊँ !
न माँ का आँचल है
न बाबा का सहारा है
लड़खड़ाते कदमों को कौन दे सहारा
आँखों में आँसू,कपकपाती जुबाँ
जीवन को अपने
ख़त्म करने का विचार
कोई तो राह दिखा दे
जिंदगी से मुझे मिलवा दे
मंज़िल तक मेरी पहुँचा दे
इस भँवर से पार लगा दे….
लेखिका मीनू यादव

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