(((( वात्सल्य ))))
==== वात्सल्य ====
•दिनेश एल० “जैहिंद”
मैं क्या जानूँ वात्सल्य-रस क्या होता है !!?
मेरा मन मात-तात हेतु तिल-तिल रोता है ||
जब मैं जन्मा माँ जन्म देकर,
भगवान को प्यारी हो गई |
मुझको इस दुनिया में लाकर,
स्वयं सदा के लिए सो गई ||
वात्सल्य का सूनापन मेरे नैना भिंगोता है —
मैं क्या जानूँ वात्सल्य-रस क्या होता है !!?
तात मेरे बाद दो साल मुझको,
छोड़ अकेला जग से चल बसे |
कृपा राम की थी जो थोड़ी-सी,
तब छिन के वो भी खूब हँसे ||
दुख के सागर में मेरा मन खाता गोता है —-
मैं क्या जानूँ वात्सल्य-रस क्या होता है !!?
पा न सका माँ का प्रेम-पुचकार,
नाहिं मैं उनका दुग्धपान कर सका |
नाहिं जान सका गोद को उनकी,
नाहिं बाँहों में मैं उनको भर सका ||
मैं अभागा मेरा मन आज भी कचोटता है —-
मैं क्या जानूँ वात्सल्य-रस क्या होता है !!?
खेलने को अाँख-मिचौली और,
सुनने को लोरी मन मचलता है |
तेरी छाती से लग कर सोने को,
मन बावला पल-पल तरसता है ||
मन लावारिस तेरी खातिर मन मसोसता है —-
मैं क्या जानूँ वात्सल्य-रस क्या होता है !!?
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