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27 Aug 2016 · 1 min read

सनम मेरा मुझसे चुराता है मुझको।

रुलाता है मुझको हँसाता है मुझको।
सनम मेरा’ मुझसे चुराता है मुझको।।

जिसे हर कदम पर सँभाला था मैंने।
वही आज आँखें दिखाता है मुझको।।

उन्हे देखकर के यही लग रहा है।
कोई तो नजर से पिलाता है मुझको।।

कभी गम खुशी में कभी गम में खुशियाँ।
गगन से ही देकर नचाता है मुझको।।

मुझे जानकर ही गिराता रहा है।
दिखाने को फिर भी उठाता है मुझको।।

जहाँ की नजर से बचाने की खातिर।
नजर में कहीं वो छुपाता है मुझको।।

लगाकर गले से मुझे थपकियां दे।
मुहब्बत के आखर पढा़ता है मुझको।।

जिसे रोशनी से नवाजा है मैनें।
वही “दीप” अकसर जलाता है मुझको।।

प्रदीप कुमार “दीप”

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