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25 Aug 2016 · 1 min read

क्या करूं इस दिल का

क्या करू अपने इस दिल का
जो मुझसे कुछ भी करवाता है

कभी फलक तो कभी खाक की
सैर करवाता है
कभी यादो के समुंदर मे लेजाता है
तो कभी भविष्य के सपने सजाता है

कभी पेडो पत्तो शाखाओं और दरख्तोमे खो जाता है
कभी पछियो की चहचहाट मे गुम हो जाता है
क्या करू इस दिल का
जो मुझसे कुछ भी करवाता है

किसी बेबस को देख कर तडप जाता है
किसी की बेचारगी पर रो जाता है
बिन कहे किसी गरीब का हो जाता है
किसी के गम मे गमगीन हो जाता है
क्या करू ये दिल मुझसे कुछ भी करवाता है

बारिश की बूंदो मे मिटटी सा भीग जातै है
सोंधी सी महक मे खुशबू सा महक जाता है
किसी की मोहब्बत मे चुपचाप डूब जाता है
मुहब्बत जिससे वही हर वक्त तडपाता है
सचमुच ये दिल मुझसे कुछ भी करवाता है
………….

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