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2 Jan 2017 · 1 min read

अच्छा सा लगा मुझको

ये शहर वफ़ाओं का दरिया सा लगा मुझको
हर शख़्स मुहब्बत में डूबा सा लगा मुझको

हद दर्जा शरारत पर कुछ शोख़ अदाओं से
जब तुमने कहा पागल अच्छा सा लगा मुझको

तफ़रीक़ मनो तू की जब हमने मिटा दी है
चिलमन में तेरा रहना बेजा सा लगा मुझको

ऐ हूरे ज़मीं तुझसे ईमान की कहता हूँ
ये चाँद तेरे आगे फींका सा लगा मुझको

जब साअते तन्हाई करवट लिये सोती थी
उफ़ कहना तेरा आकर नग़्मा सा लगा मुझको

बाहों के शिकंजे में उस पैकरे नाज़ुक को
जब मैंने कसा “सालिब”शोला सा लगा मुझको

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