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22 Aug 2016 · 1 min read

कुछ उनके लिए

कुछ उनके लिये…⊙

फिर इक बार… मैं कहूं गी तुझसे…
मैं दूर ही सही… पर रहूंगी तुझमें ॥

जज़बात में…
ख़्यालात में…
बिखरे हुए लम्हात में…!

हर वक्त…
हर हालात में…
मैं बसूंगी हर इक सांस में…!

तो क्या हुआ…!

ग़र नहीं हूँ…
अल्फ़ाज़ में…
रहूंगीहर इक ख्वाब में…!

तेरी दोस्ती…
जो है बंदगी…
इबादत जो बसी है रूह में…!

इस दिल के…
हर इक तार में…
हर दुआ में हर…
इक सांस में…
इस जमी में…
इस कायनात में…!

तेरी नज़्म में…
बज़्मात में…
मैं बसूंगीहर फरियाद में…!

तू है दूर तो… बस ये सही…
मै बसूंगीतुझमें… ही कही ॥

फ़िर इक बार… कहूंगी ये तूझसे…
मैं दूर ही सही… पर रहूंगी तूझमें ॥

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