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11 Nov 2016 · 1 min read

सवेरा

उठो ,जागो मन
हुआ नया सवेरा
आ गए आदित्य
लिए आशा किरन नई
रमता जोगी
गाए मल्हार
झूम रहे खग वृंद
नाचे गगन अपार
कलियाँ चटक उठीं,
चटक कर
करा रहीं
नव सृजन का आभास
हरी दूब पर
ओस बूँदों ने
टाँक दिये हों
मोती हार
पक्षियों का मीठा कलरव
जगा रहा है बार -बार
उठो, जागो मन
हुआ नया सवेरा ।

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