खोलो उर के द्वार ,बंद ऑखों को खोलो :: जितेंद्रकमलआनंद ( पोस्ट८१)
गीत;
——-खोलो उर के द्वार , बंद ऑखों को खोलो !
िनखिलल विश्व का प्यार , तुमंहारे घर आता है ।।
दिखता है अब सूर्य विहग – कुल कलरव करते ।
प्रफुल्लित हैं वृक्ष , फूल भी झर झर झरते ।
मानो कहते , सुनो ! हमारे दि ल की धड़कन ,
कर लो अब श्रंगार ! हमारे मन भाता है ।।
गाओ लय में , ओमकार की अरणि बन्कर, मन्थन कर लो !;मधुरिम सुर में ध्यान लगाकर ,प्रकट कर महतत्व
उजाला जी भर देखो , कर लो , साक्षात् कार ।
कमल यह फिर गाता है ।।
करो साधना प्रेममयी तुम सुंदर प्रतिपल
मन को दर्पन करो ओर भी कर लो उज्ज्वल ।
हटने दो आवरण , पडा जो अंधकार का ।
देखो फिर संसार सुनहरा दिखलाता है ।
निखिल विश्व का प्यार तुम्हारे घर आता है।।
——- जितेंद्रकमलआनंद