Sahityapedia
Sign in
Home
Your Posts
QuoteWriter
Account
14 Oct 2016 · 1 min read

गजल(सरहद)

#गजल#
***
होंगे उनके ढ़ेरों मकसद
भूल गये हैं वे अपनी जद।1

पढ़ते स्वार्थ- पुराण बहुत ही
उनके अपने-अपने हैं पद।2

धरती को गाली बकते हैं
बढ़ जाता लगता है कद।3

खेल रहे सब गिल्ली-डंडा
देख रहा है बूढ़ा बरगद।4

अपने-अपने ढ़ोल बजाते
पीट न लें अपनी ही भद।5

लूट रहे, घर-घर चाँदी है
मिल ही जाती है कोई मद।6

सीमाएँ सब लाँघ गये हैं
चुल्लू भर सब लगते हैं नद।7

सच तो कड़वा लगता सबको
खुशफहमी का रहता है मद।8

अपनी पीठ खुजाते चलते
निज करनी पर रहते गदगद।9

उड़ते पंछी रोज गगन में
कुछ तो होती उनकी भी हद।10

बलिदानों की बात जुबानी
फिर से कहती अपनी सरहद।11
@मनन

Loading...