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29 Sep 2016 · 1 min read

ग़ज़ल/गीतिका

थी जान जब तक वो लडे फिर जाँ लुटा कर चल दिये
इस देश की खातिर वे खुद को भी मिटा कर चल दिये|

लड़ते गए सब वीरता से टैंकरों के सामने
झुकने दिया ना देश को खुद शिर कटा कर चले दिए |

परिवार को कर देश पर कुर्बान खुद लड़ने गए
वो वीर थे जो देश की इज्जत बचा कर चल दिये |

एकेक ने मारा कई को फिर शहीदों से मिले
अंतिम घडी तक फर्ज अपना सब निभा कर चल दिए |

शत शत नमन उन वीरों को जो मर मिटे हम वास्ते
खुद ही कटा कर शिर दिए फिर मुस्कुराकर चल दिए |

कालीपद ‘प्रसाद’

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