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6 Aug 2016 · 1 min read

तिल तिल टूट रही हूं

तिल तिल टूट रही हूँ मैं
खुद से छूट रही हूँ मैं
सब कुछ बिखरता जा रहा
कुछ भी समझ न आ रहा।

जाने कहाँ हुई है चूक
हो पाती न क्यूँ मै मूक
देख कर न रह पाती चुप
बातें सबको जाती चुभ।

आँखो से क्यूँ दिखता है
सुन कर क्यूँ मै सुनती हूँ
अखरती मेरी है हर बात
घुट घुट कर अब कटती रात।

निरीह असहाय सी रहती हूँ
सूनी आँखो सब तकती हूँ
बेबस सी हो गई हूँ आज
जाने कैसा हुआ रिवाज।

रुक सी गई है लगे जिंदगी
बोझ सी लग रही है जिंदगी
कैसे कटे यह लम्बी उमर
अटकती सा बढरही है जिंदगी।

बोझिल सी सांसें है चलती
जाने कहाँ हो रही है ग़लती
समझनहीं कुछ भी है आता
जा रही बेबस शाम सी ढलती ।
जीना हो रहा है दुशवार

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