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29 Jul 2016 · 1 min read

मुक्तक

१-
———————
मधुवन-मधुवन हरियाली है,

औ हरी-हरी तरुवर डाली है,

लता छिछलने लगी देखलो,

कली, सुमन बनने वाली है,
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२-
———————
मेघ हमें न तरसाओ अब,

जल्दी वर्षा बरसाओं अब,

आ धरती की प्यास बुझाओ,

बहुत हुआ जल्दी आओ अब,
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रमेश शर्मा”राज”
बुदनी

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