मैं क्यों किसी की चिंता करुं
मैं क्यों किसी की चिंता करुं, किसी को जब मेरी चिंता नहीं।
मैं क्यों किसी के दर्द को समझूँ , जब कोई मेरा दर्द समझता नहीं।।
मैं क्यों किसी की चिंता करुं———————।।
तुम जीवो जैसे जीना है तुमको, तुम जावो जहाँ जाना है तुमको।
मुझसे नहीं जब तुम्हें कोई वास्ता, क्यों फिर अपना मैं मानूँ तुमको।।
मैं क्यों किसी से मतलब रखूँ , जब मुझसे कोई मतलब रखता नहीं।
मैं क्यों किसी की चिंता करुं———————-।।
बहुत कर दिया मैंने तुम्हारे लिए, ना कोई इतना प्यार तुमसे करेगा।
चाहे देख लेना उसको आजमाकर तू , बर्बाद-बदनाम वह तुमको करेगा।।
क्यों मैं किसी के लिए बर्बाद होऊँ, जब कोई मुझसे प्यार रखता नहीं।
मैं क्यों किसी की चिंता करुं———————।।
दगाबाज़ तुमसे ज्यादा कौन होगा, जिसके लिए की मैंने दुश्मनी सबसे।
और किसी ने मुझको लूटा नहीं, बर्बाद हुआ हूँ मैं सबसे ज्यादा तुमसे।।
क्यों मैं किसी के लिए अपनी जान दूँ , जब कोई मेरी मदद करता नहीं।
मैं क्यों किसी की चिंता करुं——————-।।
शिक्षक एवं साहित्यकार
गुरुदीन वर्मा उर्फ़ जी.आज़ाद
तहसील एवं जिला-बारां(राजस्थान)