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9 Dec 2025 · 2 min read

संसद के अंदर बंदर

एक दिन एक उत्पाती बंदर,
कूद गया वह संसद के अंदर।
जमकर उसने खूब उत्पात मचाया
पकड़ उसको कोई भी नही पाया।

कभी किसी कुर्सी के ऊपर,
कभी किसी कुर्सी के नीचे।
कूद कूद कर छलांग लगाई,
अपनी पूँछ उसने लहराई।।

बंदर देखकर सभी सांसद घबराये,
सिक्योरिटी गार्ड तुरन्त ही बुलाये।
बंदर किसलिए संसद मे है आया,
ये बात कोई समझ नही पाया।।

बड़ी मुश्किल से बंदर काबू मे आया,
तुरन्त सभापति ने स्वयं हुक्म सुनाया।
पेश करो उस बंदर को समक्ष तुम मेरे,
क्यों आया वह हमारी संसद को घेरे।।

बंदर बोला, सभापति महोदय,
कुछ बातें सुन लो मेरी महोदय।
बहरे हों गये तुम्हारे सांसद सारे,
कान मे रुई डाले बैठे यहाँ सारे।।

जनता की बातें ये कभी न सुनते,
अपने ही सपने ये बुनते है रहते।
कैसे हम खूब धन दौलत कमाये,
जनता को कैसे हम मूर्ख बनाये।।

चुनाव के बाद जनता के पास न जाते,
पैसे कमाने की उधेड़ बुन मे रह जाते।
संसद मे आकर कुछ भी नही ये करते,
केवल नारे बाजी यहाँ आकर ये करते।।

कुछ सांसद संसद को चलने नही देते,
एक दूजे को यहाँ ये गाली गलोच देते।
कोई किसी की टांग यहाँ पर खींचता,
कोई किसी के यहाँ कपड़े भी फाड़ता।।

कोई तरह तरह के बैनर यहाँ लाते,
कोई अपने कुत्ते के सँग यहाँ आते।
इन सब पर संसद मे रोक नही क्या ?
संसद मे आने के कोई रूल नही क्या ?

इनको यहाँ बैठने का नही है अधिकार,
इनको बाहर करने का तुन्हे है अधिकार।
संसद से ससपेंड करो तुम इन्हे तत्काल,
वेतन व भत्ता भी बन्द करे इनका तत्काल।।

जनता का पैसा ये यहाँ बर्बाद ही करते,
अपनी ही ये यहाँ मनमानी खूब करते।
कभी कोई किसी आय पर टैक्स न देते।
जनता के दिये टैक्स पर ये मौज उड़ाते।।

बंदर की सुन बातें सभापति जी बोले,
अपने हृदय के समस्त कपाट खोले।
तुरन्त उन्होंने अपना हुक्म सुनाया,
तुरन्त सारी संसद को भंग कराया।।

आर के रस्तोगी गुरुग्राम

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