#विस्मृत_स्मृति_दिवस
#दुर्भाग्यपूर्ण
■ फिर विस्मृत हुआ स्मृति दिवस।
“(प्रणय प्रभात)”
हमारे मृतपूजक देश में दिवंगत भी मौका, मौसम व माहौल के आधार पर याद किए जाते हैं। यह बड़ा और कड़ा सच बीते 08 दिसंबर को एक बार फिर रेखांकित हुआ। जिसे दुर्भाग्यपूर्ण भी कहा जा सकता है और शर्मनाक भी। देश के प्रथम रक्षा प्रमुख (चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ) जनरल विपिन रावत और उनकी सहधर्मिणी श्रीमती मधुलिका रावत सहित भारतीय सेना के 11 साहसी अधिकारियों का विमान हादसे में असामयिक निधन 4 वर्ष पूर्व 08 दिसंबर ही के दिन हुआ था। जो हादसे के अगले ही वर्ष विस्मृत कर दिया गया। इस बार तीसरी पुण्यतिथि पर भी यह दिन भूली बिसर्री दास्तानं साबित हुआ।
समूचे राष्ट्र की यह बड़ी अपूरणीय क्षति मात्र तीन साल की छोटी सी अवधि में भुला दी गई। इस दुर्भाग्यपूर्ण विस्मरण ने देश की महाधूर्त, संवेदनाहीन और अवसरवादी राजनीति के रक्त-चरित्र को एक बार फिर से उजागर करने का काम किया है। आगामी चुनाव में लाभ देने वाले छोटे मोटे मुद्दों व मसलों को क़ब्र से खोद खोद कर लाने और इवेंट बना कर शान से परोसने व थोपने वाली सियासत ने बीते 2 साल की तरह तीसरे साल भी अपने छल को स्वप्रमाणित किया।
4 साल पूर्व घटित हादसे को एक बार फिर से न केवल कुटिल राजनीति बल्कि उसके द्वारा पोषित धूर्त मीडिया तक ने भुला दिया। उसी राजनीति व मीडिया ने, जो चुनावी साल में सदियों पुराने ज्ञात-अज्ञात महापुरुष खोजने और उनसे जुड़ी जनभावनाओं को जातिवाद, भाषावाद व क्षेत्रवाद के अनुसार भुनाने में पारंगत हो चुकी हैं व हर बड़ी लकीर को छोटा करने या मिटाने के खेल को अपना जन्मसिद्ध अधिकार मान चुकी है। उसे एक धर्म की तरह निभाने में हर संभव तरीके से जुटी हुई है।
जी हां, वही धूर्त सियासत, जो एक समुदाय को अपना बंधुआ मतदाता और जनाधार बनाए रखने के लिए इंसान को भगवान तक बनाने से नहीं चूकती। यह आज का एक शर्मनाक व आंखें खोलने वाला सच है। जिसे आम जन द्वारा समझा व स्वीकार किया जाना चाहिए। मोटी चमड़ी वालों से तो इस बारे में कुछ कहना तक बेमानी है।
हमारी और आप जैसे असंख्य कृतज्ञ भारतीयों की ओर से संयुक्त सेना के पहले महानायक व उनके अधीनस्थ अफसरों के प्रति भावपूरित श्रद्धांजलियां। ईश्वर उन सभी की दिव्य आत्माओं को चिर शांति व परम सद्गति प्रदान करे। ऊँ शांति।
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●संपादक/न्यूज़&व्यूज़●
श्योपुर (मध्यप्रदेश)