चाँद, सूरज, आसमां ,सारा जहाँ ख़तरे में है ,
ताज़ा ग़ज़ल
चाँद, सूरज, आसमां ,सारा जहाँ ख़तरे में है ,
सुन रहे हैं हम भी यारों , देश, जाँ, ख़तरे में है।
लौट जा वापस वहीं पर,जिस जगह ख़ामोशियां,
घूमती फिरती है दहशत , कारवाँ ख़तरे में है।
रात दिन रोए, गले मिलकर, मुसीबत है ये क्या,
कौन कहता है ये अब,हिफ़्ज़ो-अमाँ ख़तरे में है ।
हमको भेजा रब ने जब, अपनी ज़मीं अपना वतन ,
खोल आँखें , देख लो , कोई , कहाँ, ख़तरे में है।
है मुहब्बत से भरे गुल , लाल ,पीले, बैंजनी,
नौजवानों, सोचना मत , बाग़बाँ ख़तरे में है।
चैन से रहती चली आई , निज़ामत ज़िंदगी ,
“नील” कहना छोड़ दो तुम , बेज़ुबाँ ख़तरे में है।
✍️ नीलोफर ख़ान नील रूहानी