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5 Dec 2025 · 1 min read

चाँद, सूरज, आसमां ,सारा जहाँ ख़तरे में है ,

ताज़ा ग़ज़ल

चाँद, सूरज, आसमां ,सारा जहाँ ख़तरे में है ,
सुन रहे हैं हम भी यारों , देश, जाँ, ख़तरे में है।

लौट जा वापस वहीं पर,जिस जगह ख़ामोशियां,
घूमती फिरती है दहशत , कारवाँ ख़तरे में है।

रात दिन रोए, गले मिलकर, मुसीबत है ये क्या,
कौन कहता है ये अब,हिफ़्ज़ो-अमाँ ख़तरे में है ।

हमको भेजा रब ने जब, अपनी ज़मीं अपना वतन ,
खोल आँखें , देख लो , कोई , कहाँ, ख़तरे में है।

है मुहब्बत से भरे गुल , लाल ,पीले, बैंजनी,
नौजवानों, सोचना मत , बाग़बाँ ख़तरे में है।

चैन से रहती चली आई , निज़ामत ज़िंदगी ,
“नील” कहना छोड़ दो तुम , बेज़ुबाँ ख़तरे में है।

✍️ नीलोफर ख़ान नील रूहानी

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