कविता:"उलटी दुनिया”
“उलटी दुनिया”
सुनील बनारसी
अच्छा कहलाए कौन यहाँ,
सबके मन का जाम बुरा।
कर्म करो या मत करो,
लगे कभी आराम बुरा।
सोच-समझ कर भी चलो,
फिर भी आए अंजाम बुरा।
बिन कसूर इल्ज़ाम मिले,
तो कैसा है न्याय सुरा?
दुर्जन ही सम्मानित हों,
सज्जन पाए नाम बुरा।
सच्चाई को रोका जाए,
झूठ मिले इनाम बुरा।
ईमान यहाँ बिक जाता है,
रिश्वत ही है धाम बुरा।
ज्ञान हुआ व्यापार सरीखा,
गुरु भी करते काम बुरा।
संस्कार अब ढोंग बनें,
रिवाज़ हुआ सलाम बुरा।
नेता भाषण खूब करें,
जनता पाती जाम बुरा।
न्याय तराजू झुक जाता है,
निर्बल सहता घाम बुरा।
यही व्यवस्था पल-पल चुभती,
जीवन बनता घाव बुरा।
बनारसी कहना भी कठिन हुआ,
सच बनता है दाम बुरा।
सुनील बनारसी