आख़िरी फ़ैसला
अजीब सी बात है ये अब सच खोजना
गुनाह बन गया है,
झूठों के बीच ज़मीर बचाके रहना
मुश्किल हो गया है ,
जहां सथ बोलने पर सजा मिलती हो ,और
झूठे लोगों की तारीफ़ की जाती हो ,
झूठी बातें सच लगनीं लगें इस तरह
पेश की जातीं हो ,
अब तो हमसे हमारे मादर -ए-वतन में
बाशिंदा होने का सबूत माँगा जाता है ,और
नाजायज घुसपैठिया झूठे दस्तावेजों की बिना पर जायज बाशिंदा बन जाता है ,
हम अपने वतन को छोड़कर कहाँ जायेंगें ?
जिस मिट्टी में पले बढ़े हैं उसे कैसे छोड़ पायेंगे ?
हमने भी फैसला कर लिया है अब जो भी हो ,
हम अपनी जायज हस्ती की ख़ातिर
क़ुर्बान हो जायेंगें ,
मगर किसी दीगर वतन की ग़ुलाम
ज़िंदगीं ना जी पायेंगे।