लक्ष्मी होती चंचला, रहती कर्मठ संग।
लक्ष्मी होती चंचला, रहती कर्मठ संग।
कर्महीन रोता सदा, खर्चे से हो तंग।।
मिलती उसको श्री कृपा, जो करता निज कर्म।
समय साथ चलता सदा, रत हो अपने धर्म।।
श्री नारायण संग में, बसती है बैकुंठ।
मिलती दोनों की कृपा, सुखकारी हर गुंठ।।
माता लक्ष्मी की कृपा, देता है हर तेज।
चंचलता के भाव को, रखना पड़े सहेज।।
“पाठक” अपने कर्म में, रहता होकर लीन।
लक्ष्मी की जब हो कृपा, कौन कहेगा दीन।।
:- राम किशोर पाठक (शिक्षक/कवि)