दंश ले जो तू मुझे, तो नींद आ जाये l
बीते लम्हों का सूनापन
तेरी यादों का महकता चंदन
आंखें में थमी तेरी परछाई,
रोशनी बनकर बूंदों में घुल जाये।
दंश ले जो तू मुझे,
तो नींद आ जाये।
कहां मुमकिन है मोहब्बत को
लफ्ज़ों में बयां कर पाना।
आसान नहीं भुला,
यादें सुकून की नींद में सो जाना।
तेरे बिना सारा जहां,
सूना सा लगता है,
जैसे एक सिसकी ।
ये कैसा अधूरापन ।
ये कैसा सूनापन ।
शायद यही है इश्क़ अपना,
एक मीठा सा पागलपन।
तारों की चादर ओढ़
चाँद की रोशनी में खो जाऊं ।
तेरी मोहब्बत की खुशबू में
खुद को फिर से पा जाऊं।
जीवन के पावन ‘निर्झर’ को,
तुम यूँ ही बह जाने दो।
एक पल, बस एक पल
नीले अँधेरे में गुम हो जाने दो।
~ बाल कृष्ण मिश्रा