मन का द्वंद्व” 🕊️
मन का द्वंद्व” 🕊️
हर साल की मेहनत, हर रात की तपस्या,
फिर भी परिणामों में बस अधूरी अभिलाषा।
वो हार नहीं मानता, पर मन थक जाता है,
विश्वास की दीवार अब दरक जाता है।
कभी खुद पर शक, कभी किस्मत से सवाल,
कभी वक्त को कोसता, कभी खुद से बेमिसाल।
सोचता है — “क्या कमी रह जाती है मुझमें?”
क्यों जीत हर बार छूट जाती है कुछ ग़ज़ल-सी दूरी में?
जब आखिरी पायदान पर उम्मीदें दम तोड़ती हैं,
तो आंखों में सालों की थकान झलकती है।
वो पूछता है — “क्यों किस्मत हर बार साथ छोड़ देती है?”
क्यों मेहनत को मंज़िल की पहचान नहीं मिलती है?
पर शायद यही जीवन का सबसे बड़ा सबक है —
हार अस्थायी है, हिम्मत ही असली ताबक है।
कभी न कभी ये वक्त भी बदलेगा,
और वही मन विजेता कहलाएगा। ✍️