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8 Feb 2023 · 4 min read

जिद्द

अक्सर मुझे लखनऊ नवम्बर 2020, से हर एक दो माह के अंतर पर जाना पत्नी के गुर्दे के ईलाज के लिए जाना पड़ता ।

जब भी लखनऊ जाता लौटते समय रात हो जाती और ट्रेन में कोई आरक्षण न होने के कारण बस से ही लौटना पड़ता ।

मुझे सपत्नीक लखनऊ जाना पड़ता क्योंकि पत्नी का इलाज पी जी आई में पत्नी की चिकित्सा नवम्बर 2020 से चल रही है ।

जुलाई 2022 में पत्नी को पी जी अाई दिखाकर रात नौ बजे आलम बाग बस स्टेशन से
गोरखपुर के लिए जनरथ उत्तर प्रदेश परिवहन निगम के बस सेवा पर सपत्निक सवार हुआ ।

बस खुली और परिचालक महोदय ने टिकट काटना शुरू किया सबसे पूछ पूंछ कर टिकट काटते जाते एक यात्री लखनऊ ही बैठे हुए थे जिनसे परिचालक महोदय बार बार पूछते कहाँ का टिकट बना दे वह महाशय बार बार बस यही कहते अभी थोड़ी देर में बना दीजियेगा ।

परिचालक महोदय ने सबका टिकट बना दिया था अब वही महाशय टिकट के लिए शेष बचे हुए थे जो बार बार यही कहते जा रहे थे कि अभी आगे चलिए टिकट बनवा लेते है बस पालीटेक्निक चौराहा से आगे बढ़ी
परिचालक ने पुनः निवेदन के लहजे में कहा सर आप टिकट बनवा लीजिये कहाँ जाना है अब पूरी गाड़ी में आप ही का टिकट शेष है।
आप अपना टिकट बनवा लोजिये कहां जाना है यह तो बताइए रास्ते मे यदि चेकिंग हो गयी तो हम क्या जबाब देंगे ?

हमारी नौकरी चली जाएंगी आदि आदि लेकिन वो जनाब ज्यो ज्यो परिचालक पूछता त्यों त्यों यही बताते आगे चलिए टिकट बना लेंगे परिचसाक और यात्री के बीच नोक झोंक चल ही रही थी जो बेवजह बस में अन्य यात्रियों के लिए परेशानी का शबब बनी हुई थी ।

यात्रियों ने बीच बचाव करने की कोशिश किया जब कोई भी यात्री उन महाशय से कहता साहब टिकट बनवा लीजिये यहाँ बनवाइये या कही और क्या फर्क पढ़ता है?

जहाँ दे बैठे है वहाँ से जहां आपको जाना है टिकट का पूरा पैसा लगेगा चाहे जब जहाँ टिकट बनवाइये एक डर जरूर है कि रास्ते मे यदि चेकिंग हो गयी तो कीमत परिचालक को चुकानी पड़ेगी आप तो किनारे निकल जाएंगे ।

अतः आप टिकट बनवा लीजिये वह महाशय और भी क्रोधित होते हुए बोले इस कंडक्टर को यह नही पता कि मेरा नाम सत्येंद्र सिंह सम्राट है और पूरे उत्तर प्रदेश परिवहन निगम में हर बड़ा छोटा अधिकारी जानता है कंडक्टर बोला साहब हो सकता है मेरा पूरा मोहकमा आपके ईशारे पर नाचता होगा इससे कोई फर्क नही पड़ता आप होश में नही है पूरी दुनियां आपके नशे में समाई हुई है आपने शराब पी रखी है आप को किसी की बात समझ मे नही आ रही है ।
इतना सुनते सत्येन्द्र सिंह सम्राट बोला कंडक्टर तुम समझ नहीं पा रहे हो मै कौन हू कंडक्टर बहुत सामान्य लहजे में बोला पूरी तरह समझ गया हूं जी आप सूट बुट के साथ शराब के नशे में धुत किसी शरीफ बाप की आवारा औलाद है या यूं कहें #आप ऊंची दुकान फीकी पकवान # जैसे है जो अपनी करतूतों से मा बाप को भी शर्मिंदा और शर्मसार कर रहे है आप #ऊंची दुकान के फीकी पकवान# से अधिक कुछ नहीं लग रहे है आपके मां बाप का पुण्य प्रताप है जो आपको आपकी हरकतों से बचाता जा रहा है मगर कब तक।

कंडक्टर बोला ड्राइवर साहब गाड़ी रोकिये और ड्राइवर ने ब्रेक लगाकर गाड़ी रोक दिया तब कंडक्टर ने कहा अब शराफत इसी में है कि या तो आप उतर जाईये या टिकट बनवा लीजिये रात के लगभग साढ़े दस बज रहे थे तब सत्येंद्र सिंह सम्राट विवश होकर पांच सौ का नोट निकाल कर देते हुए बोला गोरखपुर जाना है कंडक्टर ने नोट हाथ मे लेते हुए गोरखपुर का टिकट सत्येन्द्र को टिकट देते हुए बोला तभी से आप परेशान करते आ रहे है यही काम पहले कर लिया होता तो इतना बड़ा फसाद खड़ा नही होता और बाकी पैसेंजर्स कोई परेशानी होती।

सत्येन्द्र सिंह सम्राट को लगा जैसे कंडक्टर ने उससे टिकट का पैसा लेकर उसके वजूद को ही ललकार दिया हो वह बार बार कहने लगा अगला बस डिपो कौन है कंडक्टर ने बताया अवध सत्येन्द्र सिंह सम्राट ने कहा आने दीजिए डिपो मै आपको आपकी अशिष्टता के लिए आपकी औकात दिखाता हूं और तैश में आकर बोला शिकायत पेटिका किधर हैं कंडक्टर बोला ड्राईवर साहब के पीछे है जो शिकायत करनी हो कर दीजिए फिर कुछ देर शांत रहने के बाद बोला कितनी दूर है अवध डिपो कंडक्टर बोला आ गया सत्येन्द्र सिंह सम्राट बस रुकते ही बस से उतर कर कहीं गया और जब बस खुलने लगी तो दौड़ा भागा आया और बस में बैठ गया कंडक्टर ने पूछा क्यों साहब अब तो डिपो भी आ गया कहां है उत्तर प्रदेश परिवहन निगम के उंच्च अधिकारी जो आपके इशारे पर पानी भरते है मै तो सोच रहा था कि आप उन्हें लेकर आएंगे आप तो अकेले ही आ गए क्या समझा था अपने कि हम लोग रोज रोज सड़क पर चलते हैं खाग छानते है पैसेंजर को देखकर तजुर्बा हो जाता है कि वह क्या हो सकता है आप झूठे हेकड़ी मार रहे थे आप अच्छे परिवार की आवारा औलाद है या यूं कहे आप# ऊंची दुकान के फीकी पकवान # की तरह है।

नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश।।

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