नाम अमृत
///नाम अमृत ///
नित्य ही त्रिलोकी तारक मंत्र सीताराम की,
चित्त मन बुद्धि देह में अमिय रसधार बहे।
हृदय में उठें श्रीराम चरण पद युगल स्पंदन,
रोम रोम से प्रतिपल यही गुंजित नाद रहे।।
रहूं स्नात सदा ही नाम अमृत की बरसात में,
उठते हों नित्य निरंतर तंतु कोषों से यही स्वर।
सियाराम चरण सेवा संकल्प का उद्वाह तत्पर,
रमता रहूं हर क्षण अचल मन बनकर अक्षर।।
राम ही अंतर विवर राम ही सूक्ष्म घन आकाश,
राम ही से पूरित अग जग सारा शक्ति प्रकाश।
वही श्रुति ध्येय अवधेश हैं मानवता के धारक,
प्रभु ही हरते नित्य जगत में वरिमा के संत्रास।।
स्वरचित मौलिक रचना
रवींद्र सोनवाने ‘रजकण’
बालाघाट (मध्य प्रदेश)