लिखने के लिए
लिखने के लिए मुट्ठी भर विचार और आसमान सा व्यापक और ऊँचा हौसला चाहिए। दुनिया में ज्यादातर लोग इसलिए लिख नहीं पाए, क्योंकि वह गलत होने से डरते रहे। जो गिरने से डरते हैं, वे जीवन में उड़ान नहीं भर सकते। यह ध्यान रखना चाहिए कि भावनाएँ पवित्र हों। वजह यह है कि भावनाओं की पवित्रता कलम को गलत दिशा में जाने नहीं देती।
लिखने के लिए जरूरी है कि आप अपनी आँख, कान, हृदय, और मस्तिष्क को हमेशा खुला रखें। फिर तो आप एक लम्बे अरसे पहले देखी गई ‘झलक’ को विराट रूप में देखने और सोचने के लिए सक्षम हो जाते हैं। समस्याओं से घबराना नहीं चाहिए, क्योंकि समस्या के साथ समाधान भी जन्म लेता है।
लिखने की कला अपने विचारों, भावनाओं और अनुभवों को व्यक्त करने का एक शक्तिशाली माध्यम है। यह दूसरों के साथ जुड़ने, अपने विचारों को साझा करने तथा ज्ञान को बढ़ाने का एक प्रभावी माध्यम है। बेहतर लिखने के लिए नियमित लेखन आवश्यक है। इसके अलावा विषय चयन, स्पष्टता, संक्षिप्तता, सारगर्भिता इत्यादि का ध्यान रखना चाहिए। साथ ही लेखन-कर्म को अपनी आदत में शुमार करना चाहिए।
हड़बड़ी में लिखे गए गोपनीय नोटबुक्स और तीव्र भावनाओं में टाइप किए गए पन्ने भी खुद की खुशी के लिए होना चाहिए। यह तभी सम्भव हो पाता है, जब इंसानी हृदय में समर्पण और मानवीय भाव हों। इंसान को उतरना चाहिए, जितना वह भावनाओं के समन्दर में उतर सकें। वैसे भी सरल मन वाले व्यक्ति सन्त सरीखे ही होते हैं।
हर ख्याल कविता नहीं हो सकता, लेकिन वह ख्याल तो है। ऐसे वक्त में साहित्यिक, व्याकरणिक और वाक्य विन्यास सम्बन्धी प्रतिबंधों को भूल जाना चाहिए। वजह ये प्रतिबंध जंजीर की तरह जकड़ कर रखते हैं, जिससे विचार पंख लगाकर सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड की सैर करने में असमर्थ हो जाते हैं। भीतर की नजरों के अर्थपूर्ण सार को शब्दों के सागर में तैरते हुए तैयार करना चाहिए। जो नहीं तैरते वो पार नहीं लग पाते।
खोना, रोना, होना – ये परम सत्य है। खोने को हमेशा के लिए स्वीकार करें। रोने से अस्तित्व का बोझ हल्का होकर मन शान्त होता है। होनी को कोई टाल नहीं सकता, वो तो होकर ही रहता है, चाहे कितना भी ताकतवर इंसान क्यों ना हों। जीवन की वास्तविकता की समझ सृजन का मार्ग प्रशस्त करती है। इससे कृति कालजयी बनती है। फिर उसका पताका दुनिया भर में फहरता है।
ऐ मेरे दोस्त, दुनिया के लिए लिखो। लिखने के लिए अनगिनत विषय हैं, बशर्तें इंसान में हुनर हों। ब्रह्माण्ड के कण-कण में सृजन के तत्व समाये हैं। और, हर सृजन अपने आप में अनूठा होता है। गद्य और पद्य की अब तक अविष्कृत सारी विधाओं के अलावा भी बहुत कुछ है, जिस पर अभी लिखा जाना शेष है। मेरी गुजारिश है कि आप देखें, सोचें और उसे लिखें। लिखना ही अन्तिम साक्ष्य होता है, जो कभी मिटता नहीं। वे तमाम शब्द सदा जीवित रहते हैं मुस्कुराते हुए।
लिखने के लिए व्यसन मुक्त जीवन और समय प्रबंधन करना सोने में सुहागा की तरह होता है। वजह यह कि नशे की प्रवृत्ति से दूर रहने पर उस समय का उपयोग साहित्य सृजन के लिए किया जा सकता है। साहित्य सृजन में भी एक नशा है। लेकिन यह नशा जन-कल्याण एवं जन-चेतना का विकास करता है। लिखने के लिए जुनून जरूरी है। नींद में कटौती और मितभाषी होना भी आवश्यक है। आशय यह है कि इस शौक को पूरा करने के लिए समय बचाना अर्थात समय निकालना अत्यावश्यक है।
साहित्य-संसार अनन्त है। वह किसी एक व्यक्ति या समूह के लिए नहीं, बल्कि सबके लिए होता है, सारी दुनिया के लिए होता है। यह सोचकर भी इंसान ऊर्जस्वित और प्रेरित हो सकता है कि पाठक आपके लिखे, देखे और सोचे हुए दृश्य को पढ़कर हू-ब-हू देखने-सोचने में समर्थ होता है। यह ना भूलें कि भीतर से उभरता हुआ जंगलीपन, अनुशासनहीन और अनगढ़ ख्याल जितना अजीब होता है, उतना ही बेहतर होता है। मेरी शुभकामनाएँ आपके साथ हैं…।
मेरी 59वीं कृति : कभी-कभी (विचार अभिव्यक्ति संग्रह) से…।
डॉ. किशन टण्डन क्रान्ति
साहित्य वाचस्पति
साहित्य एवं लेखन के लिए
लाइफ़ टाइम अचीवमेंट अवार्ड प्राप्त
हरफनमौला साहित्य लेखक