मेरे सांस में तुम बस्ती हो
मेरे सांस में तुम बस्ती हो
✍🏼 रचनाकार – शाहबाज आलम “शाज़”
(युवा कवि, स्वरचित रचनाकार — सिदो कान्हू मुर्मू क्रांति भूमि, बरहेट सनमनी)
मैं वह शाज़ हूं जिसमें सिर्फ तुम बस्ती हो,
हर ख्वाब, हर अहसास में तुम्हारी सर्दी-गर्मी बसती हो।
तुम्हारी मुस्कान से ही सुबहें सजती हैं,
तुम्हारी यादों से ही मेरी रातें ढलती हैं।
तुम चली जाओ तो जैसे हवा भी रुक जाती है,
मेरे दिल की हर धड़कन तुम्हारा नाम पुकार जाती है।
मैंने खुद को भुलाकर तुम्हें याद किया,
हर दर्द में बस तुम्हारा एहसास जिया।
न जाने कैसी यह मोहब्बत की सजा है,
जिसमें जुदाई भी तुम्हारी दुआ सी लगा है।
तुम मेरी ख़ामोशी की भी आवाज़ बन गई,
मेरे हर अल्फ़ाज़ की आगाज़ बन गई।
मैं वह शाज़ हूं जिसमें सिर्फ तुम बस्ती हो,
मेरे सांस, मेरी रूह, मेरी हस्ती में तुम सजी हो।
रचनाकार – शाहबाज आलम “शाज़”
(युवा कवि, स्वरचित रचनाकार — सिदो कान्हू मुर्मू क्रांति भूमि, बरहेट सनमनी)