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31 Oct 2025 · 2 min read

सरदार

वह धरती का मौन-संग्रह था
जहाँ शब्द नहीं, बीज उगते थे।
पैदल चला,
पर दिशाएँ स्वयं उसके पीछे थीं,
जैसे गुरुत्वाकर्षण अटल।
गांधी आया
वह आलोक का विस्फार;
पटेल ने केवल स्वीकारा
बिना शीश झुकाए,
जैसे कोई पुरातन वृक्ष
स्वीकारता है सूर्य की पहली चोट।
उसने अपने भीतर का वकील मारा,
और एक अधिकारहीन कृषक को जन्म दिया।
यह था आत्म-उत्सर्ग का पहला अध्याय
पन्ने फटे नहीं, चेतना मुड़ी।
बारडोली की वह तपस्या?
सिर्फ कर-मुक्त भूमि नहीं,
वह लौह-पौरुष की पहली कसौटी थी
जहाँ अधिकार का प्रश्न,
अस्तित्व का प्रश्न बन गया।

उसकी भाषा
वह पत्थर का कोरापन,
कोई अलंकार नहीं, कोई राग नहीं।
दूसरे थे—अमूर्त प्रेम के पुजारी,
अस्पष्ट भविष्य के चित्रकार।
वह? वह वर्तमान का वास्तुकार था
कंक्रीट, रेत और श्रम का निर्जन सत्य।
नेहरू
वह काँच का स्वप्न, दूर की कौंध;
पटेल
वह नींव का अँधेरा, अदृश्य भार।
क्या यह नियति का क्रूर खेल था
कि एक को मिले क्षितिज का उत्सव,
और दूसरे को जड़ होने का अनिवार्य दुःख?
उसने अपनी पहचान को
एक गहरी छाया में छिपाया।
नेतृत्व उसका वैकल्पिक ताप था
जब सूर्य अस्त हुआ,
तो उसने दहन को संभाला,
प्रकाश नहीं माँगा।

फिर आया वह विखंडन
मातृभूमि की छाती पर
पड़ी असंख्य दरारें।
प्रत्येक रियासत
एक अकेली, उद्दंड दीवट;
हर शासक—एक खंडित अहंकार का विकृत बिंब।
पटेल, हाथ में मौन का चाकू,
दृष्टि में अखंडता का मंत्र।
वह इतिहास का सर्जन था,
दर्द दे रहा था,
पर विषाणु काट रहा था।
वह रियासत नहीं देख रहा था,
वह देख रहा था
एक बहती हुई नदी,
जिसे सहस्र-धाराओं में मरने से बचाना था।
हैदराबाद?
एक अँधेरा कुआँ,
जहाँ निजामी विष रिस रहा था।
पटेल का निर्णय
ठोस धातु की ध्वनि
न कोई भावुकता का पुल,
बस यथार्थ की पक्की सड़क।
उसने विस्मृति को चुना,
ताकि स्मृति बनी रहे।
सत्ता को त्यागा,
ताकि शक्ति केंद्रित हो।
वह एक-पुरुष सेना था—जो नक्शे को
हाथ की हथेली में समेट लाया।

जब कार्य पूर्ण हुआ,
और सीमाएँ शांत हुईं,
वह कहाँ गया?
वह विलय हो गया
अपने ही कर्म में।
वह दीवार नहीं रहा,
वह बन गया भवन का ढाँचा।
वह विलीन हुआ,
जैसे ईंट सीमेंट में विलीन होती है।
उसकी मृत्यु?
वह केवल व्यक्ति का अंत नहीं था,
वह था कर्मठ युग का एक आवश्यक विराम।
आज जब हम इस अखंड भारत को देखते हैं,
यह सिर्फ भूगोल नहीं है
यह है एक संकल्प जो लौह-रक्त से लिखा गया।
वह शून्य बन गया
जो सब कुछ समाहित करता है।
पटेल दिखता नहीं
वह होता है।
वह हमारा अटल सत्य है
उस अदृश्य शक्ति का प्रतीक,
जिसके बिना आज़ादी
सिर्फ एक कागज़ का टुकड़ा होती।
वह मूर्ति नहीं,
वह भारत की हड्डी है।

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