"सच्ची रौशनी"
“सच्ची रौशनी”
किसी ज़रूरतमंद को दस का नोट देने में
अजीब-सा दर्द होता है,
जैसे हमने कुछ खो दिया हो —
थोड़ा सा “मैं” कम हो गया हो।
और वहीं,हज़ारों के पटाखे लेकर
आसमान फोड़ देना…
वो तो जैसेखुशियों की रेस में पहला इनाम जीत लेना लगता है।
पर उस दिन —पिछली दिवाली ने एक सबक सिखाया,
जो इस दिवाली… मैंने नहीं दोहराया।
समझ आया —
दिवाली पटाखों या मिठाई से नहीं होती,
कुछ दुआओं से भी…जगमगाती है — दिवाली। 🌙