Sahityapedia
Sign in
Home
Your Posts
QuoteWriter
Account
29 Oct 2025 · 1 min read

ग़ज़ल।

वाकया कुछ ये हुआ कि छत पे वो आने लगा?
चांद भी उस सख्श से अब तो जलन रखने लगा।

काम था मेरा की गीतों में महज उसको लिखूं,
मेरी नाकामी पे अब वो खुद गजल लिखने लगा।

पास रहने का हुनर जबसे मेरा जाता रहा,
दिल में बैठा सख्श मुझसे फासले रखने लगा।

दौर आयेगा मिरा ये सोचकर बैठा हूं मैं,
मेरे हिस्से के दिनों को अपना वो करने लगा।

साजिशें नाकाम सारी खुद व खुद होती रहीं।
गीत गजलों में ही उसकी मैं सफर करने लगा।

जुगनुओं का साथ क्या बस रात भर का ही सफर,
वो मुसाफिर गालियां सूरज को अब देने लगा।

अभिषेक सोनी “अभिमुख”
ललितपुर, उत्तर–प्रदेश

कवि सम्मेलन में आमंत्रित करने के लिए संपर्क करें।
+91 7752993511, abhisheksoniji01@gmail.com

Loading...