अरूणोदय की छटा
प्रकृति ने श्रृंगार शुरू कर दिया है,
हवा ने भी गुनगुनाना शुरू कर दिया है,
झील के पानी की झिलमिल सी लहरों ने
मानो सूरज को दर्पण दिखाना शुरू कर दिया है।
खुद भगवान ने सजाया है संसार को
वो देखो दूर सफ़ेद बर्फ के पहाड़ को,
सूरज की पहली किरणों ने अब,
लाल चोला पहना दिया है पहाड़ को।
पक्षियों ने भी सुरों का आलाप छेड़ा,
हर डाल ने जैसे कोई गीत गुनगुनाया,
फूलों ने खोल दिए अपनी पंखुड़ियों के द्वार,
जैसे कोई अपने प्रियतम के आने की सूचना पाया।
घास की पत्तियाँ ओस में भीगी हैं,
है हर कण में चमकती रौशनी की लकीरें,
सूरज ने जैसे धरती को छुआ है,
तो जाग उठी हैं सारी तस्वीरें।
पर्वत मुस्कुरा रहे हैं अपनी छटा में,
नदियाँ भी नाच रही हैं लहरों की चाल में,
धरती ने ओढ़ लिया है सुनहरा घूंघट,
खुशबू घुल गई है जैसे हवा के हर झोंके में।
गायें चरागाहों की तरफ़ चल पड़ीं है,
गडरिये बाँसुरी बजा रहे हैं हँसी में,
फूलों से सजी घाटियाँ गा रही हैं,
सुबह की रौशनी के गीत मस्ती में।
ये पल है निर्मल, ये क्षण है पावन,
हर दिशा में जीवन गूंज रहा है,
सूर्य की पहली किरण ने जब छुआ धरा को,
तो लगा जैसे उसका आशीर्वाद मिल रहा है।
प्रकृति के इस अद्भुत श्रृंगार में,
हर मन में उमंग का संचार है,
लगता है जैसे स्वयं ईश्वर ने,
आज धरती पर किया अवतार है।
सूरज की पहली किरण से धरती ने कहा
“धन्य हूँ मैं, जो तेरा स्पर्श पाया”,
और इस सुनहरी भोर की गोद में,
जीवन ने एक नया गीत गुनगुनाया।