स्नेह आधार
///सनेह आधार///
युग युग से आदर्शों का,
उज्जवल पथ दिखलाने।
बह रही मां पावन गंगा,
जीवन का उद्देश्य सिखाने।।
उद्गम लघु लघु सा जिसका,
किंतु मिलन विस्तीर्ण अपार।
उद्गम में पाती शिव जटाधार,
ले कलेवर सर्वग्राही समाकार।।
मिलती हैं जब सागर में तो,
हो जाती हैं वृहद सहस्त्रधार।
ऐसे ही रे मानव हो चल तू,
जड़ जंगम का सनेह आधार।।
स्वरचित मौलिक रचना
रवींद्र सोनवाने ‘रजकण’
बालाघाट (मध्य प्रदेश)