दोस्ती हममें नहीं और रक़ाबत भी नहीं है
दोस्ती हममें नहीं और रक़ाबत भी नहीं है
मन को फिर राब्ता करने की इजाज़त भी नहीं है
देखिये उनका हुनर झूठ-भरम-फ़ित्ना गिरी में
हाय उनको तो कोई खौफ-ए-क़यामत भी नहीं है
चढ़ के मिम्बर पे जहां भर को सबक़ दे रहें हैं जो
उनके दिल में क्या कहें थोड़ी सदाक़त भी नहीं है
अपना सर दे दिया के बाग़ ये गुलज़ार रहेगा
उनकी नज़रों में मगर ये तो शहादत भी नहीं है