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22 Oct 2025 · 1 min read

दोस्ती हममें नहीं और रक़ाबत भी नहीं है

दोस्ती हममें नहीं और रक़ाबत भी नहीं है
मन को फिर राब्ता करने की इजाज़त भी नहीं है

देखिये उनका हुनर झूठ-भरम-फ़ित्ना गिरी में
हाय उनको तो कोई खौफ-ए-क़यामत भी नहीं है

चढ़ के मिम्बर पे जहां भर को सबक़ दे रहें हैं जो
उनके दिल में क्या कहें थोड़ी सदाक़त भी नहीं है

अपना सर दे दिया के बाग़ ये गुलज़ार रहेगा
उनकी नज़रों में मगर ये तो शहादत भी नहीं है

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