मत छीन हमारे बचपन को
बातों ही बातों जिद्दकरके
रो चिल्लाकर मनमानी से
गलती सलती बातों रूढ़ना
उल्टे रौब अकड़ दिखाता
नटखट बदमाश शैतानी से
पल बिछुड़ना क्षण मिलना
लड़ना झगड़ना दोस्ती कर
मुस्कराना है मेरी पहचान
कौन नहीं जानता बचपन
रूठा रूठी मान मनौवल
बालूभीत सा सपना होता
आँखों में आँसू भरा रहता
स्नेह प्यार का एक बहाना
जो है मेरा ढाल तलवार
हँसने में कुछ देर ना करता
रोना चिल्हाना बातों होता
पर डर लगता है कोई आकर
छीन ले मेरे प्यारे बचपन को
आज रेत भरा है मेरा सपना
क्या जानें कल हो जाए अपना
मत छीन हमारे बचपन को
खेल कूद अल्लड मदमस्ती में
नव नूतन ज्ञान हासिल करता
दिखलाऊँगा कल निज रुतवा
मत छीन हमारे बचपन को
बचपन यादें कभी ना भूलता
सोच जरा बचपन की कहानी
मेरी तेरी बनेगी जीवन रुहानी
मत छीन ना लेना बचपन को
आज और कल कुछ करना है
क्योंकि . . . मैं … ?
भविष्य हूँ सर्व सपनों का ॥
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टी .पी .तरुण