वर्तमान सत्ता को उसके पाप गिनाने आया हूँ।।
मैं अभीक हूं झोपड़ियों का दर्द चुराकर लाया हूं।
वर्तमान सत्ता को उसके पाप गिनाने आया हूँ।।
बेच दिया अंतर्मन को निष्ठुर कट्टर बैरागी को,
हृदय पट भी खोल दिए साधु सन्यासी बाबा को,
आशा केवल बस इतनी इतिहास रचेंगे हम फिर से,
उम्मीदें बस इतनी सी की विश्वगुरु होगे फिर से,
लेकिन विश्व गुरु तो क्या हम गुरु मात्र न बन पाए,
दस सालों में स्कूलों में शिक्षक तक न बन पाए,
बाबा जी ने खेल रचा बस कट्टर पंथी मन वाला,
बना युवाओं को छोड़ा बस एक रंग चोले वाला।
भगत सिंह का वंशज हूं मैं रंग बसंती गाऊंगा,
सत्ताओं के गलियारों में जी भरकर चिल्लाऊंगा,
चीरहरण पर चुप रहकर मैं भीष्म नहीं बन सकता हूं,
मांग अंगूठा एकलव्य से द्रोण नहीं बन सकता हूं।।
युवा दिलों की पीड़ा के छाले दिखलाने लाया हूं।
वर्तमान सत्ता को उसके पाप गिनाने आया हूँ।।
तुमने इन दस सालों में कितने गम बांटे बतलाओ?
कितने भूमि के बेटों को फंदे बेचे बतलाओ?
कितने वर्तमान, भविष्य को रोजगार दिलवा पाए?
कितने भूखे पेटों को तुम दो रोटी दिलवा पाए?
कितनी बेटी आज सुरक्षित हैं यूपी में बतलाओ?
कुल कितने आंसू सूखे हैं गिनकर आओ बतलाओ?
मैं अर्जुन का गांडीव हूं शांत नहीं रह सकता हूं,
दुर्योधन के पापों को मैं क्षमा नहीं कर सकता हूं।
चाणक्यों के परिश्रमों से चंद्रगुप्त बन जाएंगे,
जिस दिन सौ वा पाप करेंगे शिशुपाल कट जायेगें,
गिनती याद रखो तुमको गिनती सिखलाने आया हूँ,
वर्तमान सत्ता को उसके पाप गिनाने आया हूँ।
मैं अभीक हूं झोपड़ियों का दर्द चुराकर लाया हूं।
वर्तमान सत्ता को उसके पाप गिनाने आया हूँ।।
लेखक/कवि
अभिषेक सोनी “अभिमुख”
ललितपुर, उत्तर–प्रदेश।