"चतुर्दिक, "आशा"- दीप जलें..!"
आज उल्लसित है तन-मन,
हे ईश सतत वर दें।
दीपावलि का पर्व सुहाना,
सुख, समृद्धि फल दें।।
पकने लगा धान, मक्का,
खलिहान-खेत भर दें।
गन्ना, मूंगफली, सबको,
कर तृप्त, बुद्धि, बल दें।।
अहं, दम्भ, लिप्सा, त्यागें,
सम्यक व्यवहार करें।
प्रगति मार्ग हो आलोकित,
मन में उजास भर दें।।
शोषित, वंचित, पीड़ित का भी,
भरसक ध्यान करें।
रहे न कोई भूखा, नंगा,
ऐसी युक्ति करें ।।
मिटे तिमिर, मालिन्य,
ओज का उर से वरण करें।
अब न रहे नैराश्य,
चतुर्दिक, “आशा”- दीप जलें..!
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