राम आगमन
छंद – दुर्मिल सवैया ( वर्णिक छंद)
गणावली- 8 सगण( 112) चरणांत लघु लघु (1,1)
दुख की रजनी अब बीत गई, नव भोर खिली उजली हरती तम।
सुख आन खड़ा घर आँगन में,अब आँख नहीं जन की दिखती नम।।
सबने यह जान लिया अब तो, फिर क्यों न बजे धुन
झाँझर की छम।
प्रभु राम पधार गये पुर में, नगरी सगरी यह देख रही थम।।
झलके मुख मोद छठा निखरी, जननी छवि देखन में मन भावन।
सुख भाव भरा मन भ्रात तपी, वनिता प्रिय नार
किया व्रत पालन।।
सिय की भगिनी दुख भाग हटा, झट हाथ खड़ी जल धूल प्रक्षालन।
हर द्वार सजे दल तोरण हैं, शुभ रंग सुशोभित पूरित आंगन।।
-गोदाम्बरी नेगी ‘पुण्डरीक’
हरिद्वार उत्तराखंड