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27 Feb 2017 · 1 min read

कुछ दोहे

कविता किरकी कांच जस, हर किरके को मोह ।
छपने की लोकेषणा, करे छंद से द्रोह ।

आत्म मुग्ध लेखन हुआ, पकड़ विदेशी छंद ।
ताका, महिया, हाइकू, निरस विदेशी कंद ।

पुलिस, कोर्ट. लोकल निगम, कर्म क्षेत्र बदनाम
बिना गांठ ढ़ीली किये, बनते वहाँ न काम ।

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